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सोमवार, 12 सितंबर 2011

प्रयत्नों की अपनी एक सार्थकता

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देश, समाज और परिवार क्या होते है और इनके प्रति क्या कर्तव्य होते है और इन्हें मजबूत कैसे कहाँ से किया जा सकता है |
इन सबका निदान है मैं स्वय | अर्थात पेड़ की जड़ से पूर्ण समाधान |
यहीं से मेरे जीवन का सूत्र निश्चित हो गया की ...
"मैं (जड़), मेरा परिवार, मेरा समाज, मेरा देश (प्रत्येक इकाई की मजबूती में प्रकर्ति को पोषित करने की द्रष्टि आवश्यक)"


निम्न विषय बिन्दुओं में जिसको सुखद लगे, ग्रहण करने योग्य लगे, वह ग्रहण करले शेष को ध्यान में ना रखें |


सकारात्मक संवाद कितना भी 'कडवा हो या मधुर' क्यो ना हो, सभी के लिए श्रेष्ठकर होता है |
बस उसी अहम से ऊपर उठकर सकारात्मक द्रष्टि से ग्रहण किया जावे |
यदि रिश्ते की जड़ सही नहीं है.. तो फिर रिश्ते का वृक्ष कभी सुखद नहीं हो सकता हैजो आने वाली पीढ़ियों को सुखद आनंद दे सके |
इसलिए जड़ों को स्वस्थ करना होगा | सुखद सरल जीवन जीने के लिए रिश्ते की जड़ों में अहम और अपेक्षा के कीटाणु है, इन्हें गहराई से समझना होगा |
इसलिए की हम तो लादते रहे है__कही हमारी पीढ़ी को ना लादना पड़े | अहम और अपेक्षा के कीटाणु से मुक्त होकर ही हम हमारी नई पीढ़ी को बिना बोझे का सुखद सरल जीवन दे सकते है | देश-समाज दुसरो से अपेक्षा छोड़कर हमे स्वयं से प्रारम्भ कर इस तंत्र को दुरस्त करना चाहिए | अहम और अपेक्षा के कीटाणु से पहले हमे मुक्त होना होगा | मेरे प्रयास तो प्रारम्भ हो चुके है | जो मेरे स्वय के लिए और मेरे बच्चों को सुखद सरल जीवन की राह दे सकेगे | आप सबकी भी पहल इसी जीवन में आपके आपके बच्चों में सुखद सरल जीवन का प्रवाह ला सकती है | कोई भी फल किसी विशेष पेड़  का ही होता है | उस पेड़ से ही उस फल को पूर्ण खुराक मिलती है |
रिश्तों को मानना और रिश्तों की गहराई को जाना बहुत अलग बात है, अर्थात 'शरीर और आत्मा' जितना अंतर है |
आप सभी मेरे परिवार के सदस्य मेरे अतीत की तरफ ऊँगली उठा सकते हो, क्यूंकि मैंने दिखता हूवा खोया है और जो ना दिखता पाया है ?
बाहर का प्रकाश तो फिर प्रयासों से उत्पन कर सकते है, किन्तु अन्दर का प्रकाश तो केवल यज्ञ करने और आहुति देने से ही संग्रहित होता है | इस तप के प्रकाश से ही आगे की पीढियों को सुमार्ग मिलता चला जाता है और हम को भी जीते-जी  मोक्ष मिलती जाती है |


कर्म-कर्तव्यों की द्रष्टि से मेरे अतीत में सकारात्मक प्रयासों के बाद भी जो उपलब्धी मैं चाहता था, मुझे अभी तक प्राप्त नहीं हो सकी | फिर भी मैंने बहुत कुछ पाया है  |
इसी कर्म-यज्ञ में सफलता का प्रयास फिर भी निरंतर है | अभी तक सफल नहीं होने के बावजूद मुझे लगता है, कि प्रयत्नों की भी अपनी एक सार्थकता होती है | सिर्फ सफल होने वालों पर ही नहीं बल्कि प्रयास करने वाले हर प्रत्यासी पर भी ईश्वर की कृपा द्रष्टि होती है
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आपका शुभेछु  - यशबाबू 

1 टिप्पणी:

  1. बहुत अच्छा लगा आपका यह आलेख। कर्तव्यनिष्ठा हमारे व्यक्तित्व का हिस्सा होनी ही चाहिए। हर रिश्ते से जुड़े दायित्वों को यदि जिम्मेदारी से निभाया जाए तो नींव मज़बूत होती है। परिवार , देश और समाज के लिए कर्तव्यों को समझना और निभाना जी जीवन की सार्थकता है।

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