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सोमवार, 21 नवंबर 2011

रूढ़ीवाद के साथ__उत्थान कहाँ ?

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रूढ़ीवाद के साथ__उत्थान कहाँ ? * प्रत्येक व्यक्ति समाज में स्वयं का प्रतिष्ठित स्थान चाहते हुए बढना चाहता है | समाज को उन्नति पर बढाने का कार्य कुछ चंद व्यक्तियों पर छोड़ समाज का व्यक्ति जिसमें स्त्री हो या पुरुष दोनों स्वयं के सामाजिक कर्तव्य से विमुख हो जाते है और सामाजिक बुराईयों को समाप्त करने की जिम्मेदारी समाज के नेताओं पर छोड़कर चलते रहते है |
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क्या हम अपने निहित स्वार्थों के लिए समाज इकाई का पतन नहीं कर रहे है ? जी हाँ.. इस प्रश्न पर समाज के लोग नहीं केवल आप स्वयं विचार करें !
समाज के नेता स्वयं की जिम्मेदारी प्रमाणित रूप से तब ही कर सकते है जबकि वे स्वयं और स्वयं के परिवार से रूढ़ीवाद को हटाने की पहल करें |
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समाज बनता किससे है ? समाज की बुराईयाँ को समाप्त या दूर करने वाला कौन है ?
आप स्वयं है__ तो आइये देखते है कुछ प्रश्नों से अपने स्वयं को जोड़कर..
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क्या आप अपने परिवार के अन्दर झांक कर देखते है ? क्या आप स्वयं के पारिवारिक रिश्तों और जीवन जीने के मध्य होने वाले व्यवहार को इस विषय के द्रष्टिगत देखते है ?
क्या है रिश्तों के ताने-बाने और कितने आडाम्बरी व कितने धरातलीयता में है ?
क्या आप आत्मीय स्नेह को महसूस तो कर पा रहे है ?
क्या वर्तमान के ओपचारिक जीवन-व्यवहार से आत्मीय सुकून मिल रहा है ?
क्या आप झांकर देखते की आप आत्मिक और मनौबल से स्वयं को जुड़े हुये महसूस कर पा रहे है ?
आपके धन-संपदा 'साधन' का मजबूत होना ठीक बात है | किन्तु आप स्वयं ही साधन बन चलें__क्या यह उचित है ?
क्या आप स्वर्ग तलाशते है या स्वर्ग बनाते है ?
क्या आप मोक्ष चाते है या मुक्त होते है ?
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ऐहिक और आध्यात्मिक विकास के आपने कौन से मापदंड निश्चित कर रखे है ?
या भेड़ों के टोले की भांति चल रहे समाज में आप मनुष्यता का चेतना (वजूद) खोते जा रहे है ?
मनुष्यता की चेतना (वजूद) खोने के बाद आप किस जूण (योनी या जीवन-वर्ग) के उतराधिकारी होगें ?
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क्या आप रूपये कमाने की किताबी पढाई, डिग्री को शिक्षा मानते है ?
या व्यवस्थित, संतुलित, ऐहिक और आध्यात्मिक विकास के साथ सुखद जीवन की पद्धति को शिक्षा मानते है ?
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उक्त समीक्षा के साथ अब आप अपने आशियाने में झांके और चिंतन करें,  कि अब आप क्या करेगें ? किसके लिए और प्रारम्भ कैसे करेगें ?
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अब आप करना ही चाहते है तो आप कर सकते है__स्वयं और स्वयं के परिवार से ही |
आप वो सब कुछ कर सकते है जिनके बदलाव से आपका, आपके परिवार का, आपके समाज का और आपके देश का प्रत्यक्ष रूप से श्रेष्ट-हित जूड़ा होगा और पिछडापन दूर होगा |
प्रारम्भ आपको स्वयं से और स्वयं के परिवार से ही करना होगा |
ऐसे अनेक विषय है जिसके कारण हम अनपढ़, असभ्य, गवार, मुर्ख, जाहिल, रुढ़िवादी आदि उपमाओं से संबोधित किया जाता है | क्या यह सब हमारे बच्चों के लिए शर्मनाक बात नहीं है ? ये शब्द (उपमाये) किन कारणों को दर्शाते या प्रदर्शित करते है ? आपको कारण ज्ञात होगें कि सभ्य व्यवहार करते हुए नहीं चलना ही मूल कारण है | स्वयं और स्वयं के परिवार में आचार-विचार और व्यवहार व्यवस्थित है या नहीं ? स्वच्छता है की नहीं ? आपके किसी व्यवहार से अन्य जीव को कष्ट हो, वैसे ही किसी अन्य जीव से आपको कष्ट होगा | इस कष्ट को आप अपनी संवेदना से महसूस करेगें तो आप स्वयं का आचरण बदल लेंगे |
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इस प्रकार से आपका एक परिचित ५०० किलोमीटर की यात्रा कर हराथका, भूखा, प्यासा सायं आपके घर पहुंच कर आपको पुकारता है और आपके घर पर नहीं होने की स्थिति में आपकी पत्नी बड़े सारे घुघट में से कुच-कुच आवाज निकाल कर स्वयं के हाथों से संकेत कर आपके नहीं होने की जानकारी समझाते हुए घर का दरवाजा बंद कर लेती है | घर आये भूखे-प्यासे अथिति को पानी तक नहीं पिलाती है__पानी पिलाती क्या ! पूछती तक नहीं है | क्या है ये सब ? . भगवान् श्री रामचन्द्र जी की धर्मपत्नी सीता जी के घूँघट हमें तो दिखाई नहीं दिया | पवित्रता को घूँघट की कहाँ आवश्यकता है |
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आईये__एक और परम्परा पर द्रष्टि डालें कि कुछ समाजों में सोलह-सत्रह वर्ष आयु की लड़की का विवाह होने के साथ ही या कुछ महीनों के बाद दुर्भाग्यवश विधवा हो जाती है | पुराने समय से चली आ रही सामाजिक मान्यताऍ, परम्पराओं के कारण उस छोटी आयु की लड़की को विधवा के प्रतीक सफ़ेद वस्त्र में लपेट कर उसके जीवन की समस्त खुशियों को दफना दिया जाता है | एक स्त्री (मनुष्य) के मौलिक अधिकार समाज की अतार्किक, अव्यवहारिक मान्यताओं के कारण बलि चढाये जाते रह रहे है | क्या कहेंगे आप इसको ?
. पुरुषों ने एक से अधिक विवाह किये और कई-कई पत्नियों के संग जीवन व्यतीत किये | इसके पीछे कौनसा न्यायिक या वैज्ञानिक द्रष्टिकोण रहा और वही द्रष्टिकोण स्त्री वर्ग के लिए अनापतिजनक कैसे हुआ ? अर्थात स्त्री वर्ग को केवल एक जीवित जीवन-साथी के लिए भी अनुमति नहीं ! .
एक और जीवन स्तर का नमूना देखिये__कि एक हरिजन जाति के व्यक्ति द्वारा गाय का दूध निकाल कर डेयरी में बिक्री कर आता है, अपने खेत में सब्जी लगाकर उत्पादन को बाजार में बेच आता है, सरकारी पानी की टंकियों में पानी चढाने का कार्य करता है, भोजनालय में भोजान, चाट पकोड़ी अपने हाथों से बनाकर बिक्री करता है ऐसे अनेक उदाहरण है जहां कि बिना जाति पूछे प्रत्येक जाति के व्यक्ति सामान क्रय कर घर में प्रयोग करते है और घरों में आ रहे पानी का प्रयोग व्रत आदि में भी कर रहे है | कहाँ है छुआछुत ? . भगवान् श्री राम ने सबरी के झूठे बेर खाए | श्री रामानुज महाराज ने हरिजन महिला की पवित्र द्रष्टि का अनुसरण किया और अपने शिष्यों की त्रुटी पर क्षमा मांगी | क्या इन्होने अपने आचरणों से हमें छुआछूत सिखाया ?   .
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आपके समक्ष उक्त उदाहरण के रूप में कुछ तथ्य स्वच्छता, पवित्रता, मानवीयता के संचार हेतु प्रस्तुत किये है | इसी क्रमानुसार आप अपने परिवार, समाज, देश और प्रकृति के श्रेष्ठ विकास के हित में बहुत कुछ कर सकते है | जिसका विरोध किया जाना किसी के लिए भी सरल नहीं और आप स्वयं एवं स्वयं के परिवार से रुढ़िवादी आचार, विचार और व्यवहार को संशोधित या समाप्त कर वर्तमान समय के एक अच्छे परिवार का स्वरूप स्थापित कर सकते है | ध्यान रखे कि किसी भी नए शुभ कार्य की शुरुआत किसी भी एक विषय को चुनकर विरोध की चुनोती स्वीकार करते हुए क्रियान्वित करें | सफलता निश्चित है |   
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