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सोमवार, 31 अक्तूबर 2011

About me__अपने बारे में क्या लिखू ! "मैं" तो निमित्त मात्र हूँ |


अपने बारे में क्या लिखे !


अपने बारे में लिखने से पहले अपने आपको समझे तो सही |
अपने आपको समझे बिना कोई भी अपने स्वय के बारे में क्या लिख सकेगा ? नहीं |
यदि लिख भी दिया तो समझिये अपूर्ण अधूरा लिखा है |

अब अपने आपको समझने के लिए सर्व प्रथम क्या करना होगा ?

कुछ-कुछ समझना प्रारम्भ करने पर ऐसे कोण पर आकर अपने को खडा पाते है की जहाँ १० दिशाए दिखाई देती है | बस यही एक ऐसा बिंदु है जिससे आगे बढना बहुत कठिन हो जाता है | मजबूत व्यक्ति कोई भी दिशा में आगे बढ़ भी जाता है पर उस पर भी एक ऐसा संशय खड़ा हो जाता है कि मैं जिधर आगे बढ़ रहा हूँ क्या वह मेरे लिए सही एवं प्रमाणित है !
अब इसका निर्णय कैसे हो | यहाँ किसी का साथ भी होना आवश्यक हो जाता है | किसको साथ लिया जाए ?

साधारणसी बात है कि जो विश्वसनीय होगा उसीका साथ लिया जाएगा | विश्वसनीय !

कौन विश्वसनीय ! हम कितने विश्वसनीय है ?
दुसरे की विश्वसनीयता तो हमारी विश्वसनीयता पर ज्यादा निर्भर करती है | घूम फिर के विषय फिर हमें ही घेर लेता है | कोई बात नहीं विश्वसनीयता के साथ आगे बढ़ने में ही सार है | किन्तु इसके लिए विचारों का सुलझा होना आवश्यक है | विश्वसनीयता और विचारों के सुलझा होने की स्थिति एक साथ आ जाए तो विषय आयेगा, कि कोई भी विचार-निर्णय कब तक प्रमाणिक रहेगा ? आज मैं स्वयं के बारे में जो लिख रहा हूँ, कल तक या दस वर्षों तक क्या वह सही प्रमाणिक रह पायेगा ?

एक समय नई नवेली दुल्हन ससुराल को बहुत अच्छी लगती है, किन्तु दस वर्षों बाद वह ही दुल्हन एक साधारण औरत की तरह दिखाई देने लगती है |

क्या लिखूं मित्र.... इस संसार में प्रति पल अपना नहीं है | देखो..स्वयं को "मैं" से अलग करोगे तभी देख पावोगे |
अपने बारे में क्या लिखू ! "मैं" तो निमित्त मात्र हूँ |

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